क्या आप जानते हैं कि भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS), की शुरुआत बेहद संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में हुई थी? आज TCS विश्व बैंक, जेपी मॉर्गन, माइक्रोसॉफ्ट जैसे बड़े संस्थानों को आईटी समाधान प्रदान करती है। लेकिन इस सफलता के पीछे छिपी है कठिन मेहनत और दूरदर्शिता की एक अद्भुत कहानी। आइए जानते हैं इस प्रेरणादायक यात्रा की शुरुआत से लेकर आज तक की कहानी, जिसने भारत को डिजिटल युग में अग्रणी बनाया।
शुरुआती दौर: जब एक कंप्यूटर से हुई शुरुआत
1960 के दशक की बात है। टाटा ग्रुप के चेयरमैन जेआरडी टाटा के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। उस समय, टाटा ग्रुप के पास विभिन्न कंपनियों का विशाल डेटा मैनुअली मैनेज करना मुश्किल हो चुका था। बैठक में लेस्ली सहानी ने सुझाव दिया कि डेटा को डिजिटल रूप से प्रबंधित करने के लिए एक कंप्यूटर का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने एक आईटी कंपनी स्थापित करने का प्रस्ताव रखा।
हालांकि, यह विचार उतना सरल नहीं था जितना सुनने में लगता है। उस समय भारत में न तो कंप्यूटर थे और न ही ऐसे विशेषज्ञ जो इन्हें संचालित कर सकें। इसके बावजूद जेआरडी टाटा ने इस चुनौती को स्वीकार किया और टाटा एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (TAS) से कुछ होनहार व्यक्तियों को चुना।
पहला कंप्यूटर और संघर्ष
टीम बन तो गई, लेकिन सबसे बड़ी समस्या थी कंप्यूटर का इंतजाम करना। उस समय भारत में कंप्यूटर उपलब्ध नहीं थे, और उन्हें बाहर से मंगवाना बेहद महंगा था। जिस प्रकार के कंप्यूटर की आवश्यकता थी, उसकी कीमत करीब 8 करोड़ रुपये थी, जो आज से 50 साल पहले एक बहुत बड़ी राशि थी।
इस चुनौती से निपटने के लिए, टाटा ने IBM से 1401 मॉडल का कंप्यूटर लीज पर लिया। यह कंप्यूटर उस समय के लिए एक अल्ट्रा-मॉडर्न मशीन था, लेकिन इसकी मेमोरी मात्र 4KB थी। यह एक पूरे कमरे के आकार का था, फिर भी यह उस समय डेटा प्रबंधन और ऑटोमेशन का एक बेहतरीन टूल साबित हुआ।
टीसीएस की स्थापना
1966 में, मुंबई के चर्चगेट एरिया में निर्मल बिल्डिंग के अंदर TCS का पहला ऑफिस स्थापित किया गया। इसे शुरुआत में “टाटा कंप्यूटर सिस्टम्स” कहा गया, जिसे बाद में बदलकर “टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस” नाम दिया गया। कंपनी ने सबसे पहले पंच कार्ड प्रोसेसिंग की शुरुआत की। पंच कार्ड, एक आयताकार कागज का टुकड़ा होता था जिस पर छेद (holes) किए जाते थे। हर छेद एक नंबर या कैरेक्टर को दर्शाता था, जिसे एक विशेष मशीन द्वारा पढ़ा जाता था।
शुरुआत में TCS का काम टाटा स्टील (जिसे पहले टिस्को कहा जाता था) और टाटा मोटर्स जैसे समूह की कंपनियों का डेटा प्रबंधन करना था। लेकिन कंपनी को सही दिशा में ले जाने के लिए एक मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता थी।
एफसी कोहली: भारतीय आईटी उद्योग के पिता
1968 में जेआरडी टाटा ने एफसी कोहली को TCS का जनरल मैनेजर नियुक्त किया। एफसी कोहली, जो पहले टाटा इलेक्ट्रिक कंपनी में चीफ इंजीनियर थे, शुरू में TCS की जिम्मेदारी लेने से हिचकिचा रहे थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें कंप्यूटर के बारे में कुछ भी नहीं पता। लेकिन जेआरडी टाटा ने उन्हें समझाया कि यदि भारत में कोई शुरुआत करेगा, तो वह TCS ही होगी।
शुरुआती प्रोजेक्ट्स और चुनौतियां
TCS का पहला बड़ा प्रोजेक्ट सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के लिए इंटर-ब्रांच रिकॉन्सिलिएशन सिस्टम बनाना था। इस प्रोजेक्ट की सफलता ने कंपनी को अन्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों से कई प्रोजेक्ट्स दिलाए। इसके बाद TCS ने यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) के लिए भी काम किया।
हालांकि, इस समय तक TCS की वृद्धि धीमी थी। 1970 के दशक में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण बैंकिंग प्रोजेक्ट्स में कमी आई। इससे कंपनी को बड़ा झटका लगा। एक समय ऐसा भी आया जब TCS के बंद होने का खतरा मंडराने लगा।
अंतरराष्ट्रीय विस्तार
1970 में एफसी कोहली को अमेरिका के इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (IEEE) के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में चुना गया। यह उनके लिए एक बड़ा अवसर था, क्योंकि उन्होंने अमेरिका में कई बड़े संगठनों के साथ नेटवर्किंग की।
एफसी कोहली ने महसूस किया कि भारत के बाहर आईटी सेवाओं की भारी मांग थी। उन्होंने TCS की सेवाएं अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को प्रदान करना शुरू किया। यह कदम कंपनी के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ।
टीसीएस का आधुनिक भारत में योगदान
TCS ने भारत को डिजिटल युग में अग्रणी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कंपनी ने कई क्रांतिकारी प्लेटफॉर्म्स जैसे कि पासपोर्ट सेवा केंद्र, आईआरसीटीसी का ऑनलाइन टिकटिंग सिस्टम, और इनकम टैक्स ई-फाइलिंग पोर्टल विकसित किए।
इसके अलावा, TCS ने इंडियन पोस्ट को डिजिटल रूप से सक्षम बनाया, जिससे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी तकनीक पहुंची। आज TCS में 6 लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं, जो इसे भारत के सबसे बड़े निजी नियोक्ताओं में से एक बनाता है।
चुनौतियों से मिली सीख
TCS की कहानी हमें सिखाती है कि मुश्किलों के बावजूद यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो बड़ी से बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है। जब कंप्यूटर को एक खतरे के रूप में देखा जाता था, तब TCS ने इसे अवसर में बदला।
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निष्कर्ष
TCS की यात्रा केवल एक कंपनी की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारतीय आईटी उद्योग की नींव रखने की कहानी है। यह हमें सिखाती है कि एक छोटी शुरुआत भी बड़े बदलाव ला सकती है, यदि हमारे पास दृढ़ संकल्प और दूरदृष्टि हो। आज TCS न केवल भारत की, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है। यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है, जो मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को साकार करना चाहता है।
Disclaimer
यह लेख टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) की प्रेरणादायक यात्रा और इतिहास के बारे में जानकारी साझा करने के उद्देश्य से लिखा गया है। लेख में दी गई सभी जानकारियां सार्वजनिक स्रोतों, ऐतिहासिक संदर्भों और प्रासंगिक शोध पर आधारित हैं। हमने लेख में सटीकता सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास किया है, लेकिन यदि किसी तथ्य या जानकारी में कोई त्रुटि हो, तो यह पूरी तरह से अनजाने में हुई है। पाठकों से अनुरोध है कि वे आधिकारिक स्रोतों या विशेषज्ञ से परामर्श करके ही किसी भी निर्णय पर पहुंचे। यह लेख केवल शैक्षिक और प्रेरणादायक उद्देश्य के लिए है। इसे किसी कंपनी, संगठन, या व्यक्ति से जोड़ने या समर्थन के रूप में न देखा जाए।