आज के वित्तीय दौर में, सरकारी और प्राइवेट बैंकों के बीच का अंतर आम लोगों और व्यवसायों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। इन दोनों के बीच न केवल सेवाएं और लाभ की स्थिति में फर्क है, बल्कि उनके काम करने का तरीका, मुनाफा, और कर्मचारियों की संख्या में भी बहुत फर्क है। तो, क्या सरकारी बैंक ज्यादा बेहतर हैं, या प्राइवेट बैंक ज्यादा लाभकारी साबित होते हैं? इस लेख में हम इन दोनों प्रकार के बैंकों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, साथ ही यह भी जानेंगे कि बैंक कैसे काम करते हैं, और आम आदमी या व्यवसायी को कैसे इन बैंकों के साथ जुड़ने पर लाभ हो सकता है।
सरकारी बैंक और प्राइवेट बैंक का इतिहास
भारत में बैंकों का इतिहास बहुत दिलचस्प है। भारत में प्राइवेट बैंकों का प्रवेश 90 के दशक में हुआ, लेकिन इससे पहले, 1969 में भारत सरकार ने निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इसके बाद से सरकारी बैंक या पीएसयू (Public Sector Undertakings) बैंक प्रमुख हो गए और इनकी शाखाएं हर छोटे से बड़े इलाके में फैलने लगीं। सरकारी बैंकों का काम करने का तरीका बहुत अलग है, क्योंकि यह सरकार की नीतियों और मंजूरी के तहत काम करते हैं।
वहीं, प्राइवेट बैंकों की शुरुआत 1990 के दशक में हुई। इन बैंकों ने बहुत कम समय में अपनी पहचान बनाई और कई मोर्चों पर सरकारी बैंकों को कड़ी टक्कर दी। आज के समय में, प्राइवेट बैंक सरकारी बैंकों के मुकाबले बहुत सी सेवाओं में आगे निकल चुके हैं।
कर्मचारियों की संख्या: सरकारी बैंक या प्राइवेट बैंक?
जब बात कर्मचारियों की संख्या की आती है, तो हम अक्सर सोचते हैं कि किस बैंक में ज्यादा कर्मचारी होंगे। पुराने समय में, यह माना जाता था कि सरकारी बैंकों में ज्यादा कर्मचारी होते हैं क्योंकि इनकी शाखाओं की संख्या ज्यादा होती थी और सरकार ज्यादा मानव संसाधन का उपयोग करती थी। लेकिन आज के समय में प्राइवेट बैंकों ने भी अपनी संख्या में वृद्धि की है और अब सरकारी और प्राइवेट बैंकों के कर्मचारियों की संख्या में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है।
हालांकि, सरकारी बैंकों में कर्मचारियों की संख्या ज्यादा रही है, फिर भी पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या में 13% की कमी आई है। वहीं, प्राइवेट बैंकों में 240% की वृद्धि हुई है, जो कि सरकारी बैंकों से लगभग 2.5 गुना है। अगर हम आंकड़ों पर गौर करें, तो सरकारी बैंक में 7,70,000 कर्मचारी हैं, जबकि प्राइवेट बैंक में 7,90,000 कर्मचारी हैं। ये आंकड़े यह दर्शाते हैं कि प्राइवेट बैंक अब सरकारी बैंकों से कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
बैंकों का पैसा बनाने का तरीका
अब बात करते हैं कि बैंक पैसे कैसे बनाते हैं। बैंकों का कच्चा माल पैसा है। जब हम अपना पैसा बैंक में जमा करते हैं, तो बैंक हमें उस पर ब्याज देता है। वहीं, बैंक उस पैसे को बाजार में लोन के रूप में उधार भी देता है। बैंकों के पास जो जमा पैसा होता है, वही उनका मुख्य साधन होता है।
बैंक अपनी जमा राशि पर कम ब्याज देते हैं, जैसे कि बचत खाते में 3-4% और एफडी में 5-6% तक ब्याज होता है। वहीं, लोन पर बैंक 10-12% तक ब्याज लेते हैं। इस ब्याज दर का अंतर बैंक के लिए राजस्व का स्रोत बनता है। जैसे-जैसे बैंक इस पैटर्न का पालन करते हैं, उनका मुनाफा बढ़ता है।
सरकारी और प्राइवेट बैंक: क्या अंतर है?
जब हम सरकारी और प्राइवेट बैंकों की बात करते हैं, तो सबसे पहले यह सवाल आता है कि इन दोनों में से कौन सा बैंक ज्यादा विश्वसनीय है। एक समय था जब लोग सरकारी बैंकों को ज्यादा विश्वसनीय मानते थे। 2005 में सरकारी बैंकों का दबदबा था और 85% जमाराशि सरकारी बैंकों में थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, प्राइवेट बैंकों ने अपनी सेवाओं को बेहतर किया और लोगों का विश्वास धीरे-धीरे प्राइवेट बैंकों में बढ़ने लगा।
2009-10 में, जब लोगों को एफडी करनी होती थी, तो 97% लोग सरकारी बैंकों को प्राथमिकता देते थे, जबकि 3% लोग प्राइवेट बैंकों में जमा करते थे। अब यह आंकड़ा घटकर 57% सरकारी बैंकों का और 43% प्राइवेट बैंकों का हो गया है। इसका मतलब यह है कि लोगों का भरोसा प्राइवेट बैंकों पर बढ़ रहा है।
बैंक का भविष्य: सरकारी या प्राइवेट?
आजकल लोग प्राइवेट बैंकों में ज्यादा निवेश कर रहे हैं और उन्हें वहां से ऋण लेने में कोई डर नहीं है। अगर हम 2009-10 से तुलना करें, तो सरकारी बैंकों ने 77% लोन दिए थे, जबकि प्राइवेट बैंकों ने 23% लोन दिए थे। 2021-22 में, सरकारी बैंकों ने 58% लोन दिए हैं, और प्राइवेट बैंकों ने 42% लोन दिए हैं। इसका मतलब यह है कि प्राइवेट बैंकों का उधारी क्षेत्र बढ़ रहा है और अब लोग प्राइवेट बैंकों के साथ सुरक्षित महसूस करते हैं।
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निष्कर्ष
इस लेख से यह स्पष्ट होता है कि सरकारी बैंक अभी भी कई क्षेत्रों में मजबूत हैं, लेकिन प्राइवेट बैंकों ने अपनी सेवाओं और विश्वसनीयता के मामले में तेजी से विकास किया है। दोनों प्रकार के बैंकों का अपना महत्व है, लेकिन समय के साथ प्राइवेट बैंकों का प्रभाव बढ़ रहा है। अगर हम बात करें भविष्य की, तो संभव है कि अगले 5-10 वर्षों में प्राइवेट बैंकों द्वारा सरकारी बैंकों को कुछ क्षेत्रों में पीछे छोड़ दिया जाए।
Disclaimer
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