अगर हम दुनिया के सबसे सफल और सम्मानित बिजनेसमैन की बात करें, तो उनमें से एक नाम एन आर नारायणमूर्ति का भी आता है। इन्हें भारतीय आईटी सेक्टर का पिता (Father of Indian IT Sector) कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने भारत को उसकी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इन्फोसिस दी। हालांकि, इतनी बड़ी सफलता के बावजूद भी उन्होंने अपनी सादगी और विनम्रता को कभी नहीं छोड़ा। यही कारण है कि लोग उन्हें सिर्फ एक सफल बिजनेसमैन ही नहीं, बल्कि एक महान इंसान के रूप में भी जानते हैं।
सादगी और विनम्रता की मिसाल
नारायणमूर्ति की सादगी और उनके हम्बल बिहेवियर की कई मिसालें दी जाती हैं। साल 2019 में जब उन्होंने रतन टाटा को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया, तो उन्होंने सम्मान में झुककर उनके पैर तक छू लिए। सोचिए, जो इंसान खुद भारत के सबसे बड़े बिजनेसमैन में से एक है, अगर वह किसी को इतना सम्मान दे सकता है, तो वह खुद कितना डाउन टू अर्थ इंसान होगा!
शुरुआती जीवन और पढ़ाई
नारायण रामाराव नारायणमूर्ति का जन्म 20 अगस्त 1946 को कर्नाटक के मैसूर में एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पेशे से एक शिक्षक थे, इसलिए बचपन से ही पढ़ाई का माहौल था। उनका परिवार बड़ा था, और वे पांच भाई-बहनों में से एक थे।
उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई मैसूर से पूरी की और फिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग (NIE), मैसूर में एडमिशन लिया। साल 1967 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया। आगे की पढ़ाई के लिए उनका सेलेक्शन IIT कानपुर में हो गया, लेकिन उनके पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह उनका खर्च उठा सकें। इस वजह से वह पहले वहां पढ़ नहीं पाए, लेकिन बाद में उन्होंने खुद पैसे का इंतजाम किया और किसी तरह IIT कानपुर से मास्टर्स पूरी की।
जब आईटी सेक्टर से हुआ पहला सामना
IIT कानपुर में पढ़ाई के दौरान उनकी रुचि इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में थी, लेकिन अचानक एक घटना ने उनका पूरा करियर बदल दिया। एक दिन उन्होंने एक सेमिनार अटेंड किया, जो आईटी और कंप्यूटर साइंस पर था। इस सेमिनार के दौरान उन्हें एहसास हुआ कि आने वाला समय सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का होगा। यहीं से उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग छोड़कर आईटी में करियर बनाने का फैसला कर लिया।
करियर की शुरुआत और संघर्ष
साल 1969 में उन्होंने IIT कानपुर से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स की डिग्री पूरी की और फिर IIM अहमदाबाद में सिस्टम प्रोग्रामर के तौर पर काम करने लगे। यहां उन्होंने भारत के पहले टाइम-शेयरिंग कंप्यूटर सिस्टम पर काम किया, जो उनके करियर के लिए एक महत्वपूर्ण अनुभव साबित हुआ।
इसके बाद उन्होंने 1971 तक IIM अहमदाबाद में काम किया और फिर विदेश चले गए। इस दौरान उन्होंने कुछ समय पेरिस में भी काम किया। लेकिन 1978 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अगले 11 महीने दुनिया के 25 अलग-अलग देशों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने कई संस्कृतियों को जाना और अपने अनुभव से यह तय किया कि अब वे एक एंटरप्रेन्योर बनेंगे।
इन्फोसिस की शुरुआत
विदेश में अनुभव लेने के बाद उन्होंने भारत लौटकर एक कंसल्टिंग कंपनी “शॉर्ट ट्रिक्स” शुरू की, लेकिन यह फेल हो गई। इसके बाद उन्होंने कुछ समय पाटनी कंप्यूटर सिस्टम्स में नौकरी की, लेकिन उनका सपना अपनी खुद की कंपनी शुरू करने का था।
1981 में, उन्होंने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से ₹10,000 उधार लिए और अपने छह जूनियर्स के साथ मिलकर इन्फोसिस (Infosys) की नींव रखी। लेकिन यह सफर आसान नहीं था। शुरुआती दिनों में उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा।
पत्नी सुधा मूर्ति का योगदान
सुधा मूर्ति न सिर्फ उनकी पत्नी थीं, बल्कि उनकी सफलता के पीछे सबसे बड़ी ताकत भी थीं। जब नारायणमूर्ति के पास पैसे नहीं थे, तब सुधा मूर्ति ने उनकी मदद की। सुधा जी खुद एक इंजीनियर थीं और टाटा मोटर्स (उस समय टेल्को) में काम करने वाली पहली महिला इंजीनियर थीं। उन्होंने अपने पैसों से नारायणमूर्ति को सपोर्ट किया और उन्हें उनके सपनों को पूरा करने का मौका दिया।
इन्फोसिस: संघर्ष से सफलता तक
इन्फोसिस को सफल होने में कई साल लग गए, लेकिन नारायणमूर्ति और उनकी टीम की मेहनत रंग लाई। उन्होंने भारतीय आईटी सेक्टर को ग्लोबल लेवल पर पहचान दिलाई। आज इन्फोसिस भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है और दुनियाभर में अपनी सेवाएं देती है।
इसे भी पढ़ें:- जेपी मॉर्गन: अमेरिका की सबसे ताकतवर फाइनेंशियल शख्सियत
सीखने योग्य बातें
नारायणमूर्ति की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर इंसान के अंदर जिद और जुनून हो, तो कोई भी मुश्किल उसे रोक नहीं सकती। उन्होंने संघर्षों के बावजूद हार नहीं मानी और अपनी मेहनत से एक ऐसी कंपनी खड़ी कर दी, जो आज लाखों लोगों को रोजगार देती है।
निष्कर्ष
एन आर नारायणमूर्ति सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी सादगी, मेहनत और दूरदृष्टि ने भारतीय आईटी इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि अगर आपके सपने बड़े हैं और आप उनके लिए मेहनत करने को तैयार हैं, तो सफलता निश्चित रूप से मिलेगी।