भारत में आज जब हम “मेड इन इंडिया” का जिक्र करते हैं, तो गर्व से सिर ऊंचा हो जाता है। लेकिन आजादी से पहले, “मेड इन इंडिया” का मतलब सस्ता और घटिया सामान समझा जाता था। इसे बदलने का श्रेय एक ऐसे व्यक्ति को जाता है जिन्होंने अपने जुनून, दृढ़ निश्चय और देशभक्ति से भारत को नई पहचान दी। यह कहानी है अर्धशीर गोदरेज की, जिन्होंने सिर्फ ₹300 का कर्ज लेकर एक ऐसे साम्राज्य की नींव रखी जिसने भारत को ताले, लॉकर्स, साबुन और चंद्रयान 3 के इंजन तक दिए। आइए जानते हैं, इस प्रेरणादायक सफर की कहानी।
शुरुआत: एक अलग सोच का बीज
1868 में मुंबई के एक पारसी परिवार में अर्धशीर का जन्म हुआ। शिक्षा को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने लॉ में ग्रेजुएशन पूरा किया और वकालत शुरू की। लेकिन एक केस के दौरान, जब उनके क्लाइंट ने झूठ बोलने का दबाव डाला, तो उन्होंने वकालत छोड़ दी।
इसके बाद अर्धशीर ने फार्मेसी में काम शुरू किया। हालांकि, नौकरी में उनका मन नहीं लगा। वह कुछ बड़ा करना चाहते थे, लेकिन उन्हें मालूम था कि इसके लिए पैसों की जरूरत होगी। पिता से मदद लेने के बजाय, उन्होंने अपने पिता के दोस्त मेरवानजी मुंचीजी से ₹300 का कर्ज लिया।
पहला असफल प्रयास: देशभक्ति का जुनून
अर्धशीर ने सर्जिकल ब्लेड और कैंची बनाने का काम शुरू किया। उनके बनाए टूल्स विदेशी बाजार के टूल्स से बेहतर थे। लेकिन उन्होंने उन पर “मेड इन इंडिया” का ठप्पा लगाने की जिद की, जिसे उनके क्लाइंट ने खारिज कर दिया। क्लाइंट का मानना था कि “मेड इन इंडिया” का लेबल लो-क्वालिटी को दर्शाता है।
गोदरेज लॉक की शुरुआत
कुछ समय बाद, उन्होंने एक अखबार में चोरी और डकैती की खबर पढ़ी। उन्होंने एक ऐसा ताला बनाने का सोचा जो न केवल मजबूत हो, बल्कि सिर्फ अपनी चाबी से खुले हालांकि, पैसे की कमी फिर से आड़े आई। इस बार भी मेरवानजी ने उनकी मदद की। 1897 में अर्धशीर ने 20 स्क्वायर मीटर की एक छोटी सी जगह किराए पर लेकर “गोदरेज ब्रांड” के तहत पहला ताला बाजार में उतारा। इस ताले की खासियत यह थी कि इसे मास्टर की या किसी दूसरी चाबी से खोलना संभव नहीं था।
गोदरेज का नया इनोवेशन
अर्धशीर ने ताले में नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने एक ‘गॉर्डियन लॉक’ बनाया, जिसमें दो चाबियां थीं। इसकी दूसरी चाबी ताले के मैकेनिज्म को बदल देती थी, जिससे पहली चाबी बेकार हो जाती थी। इस ताले ने बाजार में धूम मचा दी। इसके बाद, उन्होंने एक और लॉक बनाया, जिसमें गलत चाबी डालने पर लॉक सिस्टम फंस जाता था और मालिक को संकेत मिलता था।
अलमारी और फायरप्रूफ लॉकर्स
अर्धशीर को समझ आया कि सिर्फ ताले ही नहीं, लोगों को मजबूत अलमारी की भी जरूरत है। 1902 में उन्होंने एक ऐसी अलमारी बनाई जो बिना किसी कटाई के स्टील की एक शीट से तैयार की गई थी। 1906 के सैन फ्रांसिस्को भूकंप के बाद, उन्होंने अपने लॉकर्स को फायरप्रूफ साबित करने के लिए एक सार्वजनिक प्रदर्शन किया। लोगों ने देखा कि आग में रखने के बावजूद लॉकर के अंदर का सामान सुरक्षित रहा। यह प्रदर्शन गोदरेज की पहचान को नई ऊंचाई पर ले गया।
साबुन का अनोखा प्रयोग
अर्धशीर ने देखा कि बाजार में जो साबुन उपलब्ध हैं, वे एनिमल फैट से बनते हैं, जो कई समुदायों के लिए अस्वीकार्य था। उन्होंने पूरी तरह से वेजिटेबल ऑयल से साबुन बनाने का फैसला किया। इस अनोखे प्रयोग ने गोदरेज को एक नई दिशा दी और बाजार में उनकी पकड़ मजबूत की।
विश्वसनीयता और साझेदारी
अर्धशीर ने मेरवानजी के भतीजे बॉयस को अपनी कंपनी में शामिल किया और इसका नाम गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी रखा। हालांकि, कुछ समय बाद बॉयस ने बिजनेस छोड़ दिया, लेकिन कंपनी का नाम आज भी वही है।
गोदरेज: भारत की शान
गोदरेज ने भारत को पहला स्प्रिंगलेस लॉक, फायरप्रूफ लॉकर्स, वेजिटेबल बेस्ड साबुन और अंतरिक्ष मिशन के लिए उपकरण दिए। यह कहानी बताती है कि जब इरादे मजबूत हों, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। गोदरेज न केवल भारतीय बाजार में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी “मेड इन इंडिया” का गर्व लेकर खड़ा है। यह कहानी है जुनून, मेहनत और देशप्रेम की, जिसने भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
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