यूपीएससी (Union Public Service Commission) सीएससी (Civil Services Examination) दुनिया की सबसे कठिन और प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। इसे पास करना हर किसी के बस की बात नहीं है। हर साल लाखों युवा इस परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन कुछ ही इसका सामना कर पाते हैं। कई युवा इस परीक्षा में असफल हो जाते हैं और हार मानकर पीछे हट जाते हैं। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो असफलताओं से हार नहीं मानते और अपनी मेहनत और संघर्ष के साथ सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँच जाते हैं।
आज हम बात करेंगे एक ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी की, जो हमें दिखाती है कि असफलता से डरकर हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। यह कहानी है राजस्थान की पहली महिला आईएएस अधिकारी परी बिश्नोई की, जिन्होंने लगातार दो बार असफल होने के बाद तीसरे प्रयास में यूपीएससी सीएससी परीक्षा पास की और अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया।
परी बिश्नोई का शुरू का जीवन
परी बिश्नोई का जन्म 26 फरवरी 1996 को राजस्थान के बीकानेर जिले में हुआ था। परी का पालन-पोषण एक साधारण परिवार में हुआ, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा अपनी मेहनत और शिक्षा के महत्व को समझाया। उनके पिता मणिराम बिश्नोई एक एडवोकेट (वकील) हैं, जबकि उनकी माँ सुशीला बिश्नोई अजमेर में जीआरपी थानाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।
परी को बचपन से ही अपने माता-पिता से प्रेरणा मिलती रही। उनके माता-पिता ने उन्हें कभी भी अपनी हिम्मत नहीं हारने दी और हमेशा अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित किया। परी का मानना था कि शिक्षा ही सबसे बड़ी ताकत है, जो जीवन में सफलता और उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करती है।
शिक्षा और शुरुआती कदम
परी बिश्नोई की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर के सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल से हुई। स्कूल में ही परी ने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अच्छे अंक प्राप्त किए बल्कि अपने अध्यापकों और सहपाठियों से भी सराहना प्राप्त की।
12वीं कक्षा के बाद, परी ने अपनी उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली जाने का निर्णय लिया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। इसी दौरान, वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में भी जुट गईं।
इसके बाद, परी ने एमडीएस यूनिवर्सिटी अजमेर से पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। इसके साथ ही उन्होंने नेट जेआरएफ (National Eligibility Test – Junior Research Fellowship) परीक्षा भी पास की, जिससे उनका अकादमिक क्षेत्र में उत्कृष्टता का सफर और भी मजबूत हुआ।
हालांकि, परी का लक्ष्य हमेशा से ही सिविल सेवाओं में एक अधिकारी बनने का था। सिविल सेवा परीक्षा को लेकर उनका जुनून इतना था कि वह केवल अध्ययन और परीक्षा की तैयारी में ही समर्पित हो गईं। परी का मानना था कि सिविल सर्विस में काम करने का अवसर ही उन्हें समाज की सेवा करने का सबसे अच्छा तरीका मिलेगा।
यूपीएससी की कठिन यात्रा
यूपीएससी की परीक्षा दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में मानी जाती है। इसे पास करने के लिए कड़ी मेहनत, सही रणनीति और मानसिक दृढ़ता की आवश्यकता होती है। परी के लिए यह सफर इतना आसान नहीं था। उन्होंने अपनी यात्रा की शुरुआत 2017 में की थी और दो बार असफल भी हुईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
पहला प्रयास
परी ने 2017 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी थी, लेकिन वह असफल हो गईं। यह परी के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि उन्हें लगा था कि वह इस बार परीक्षा को आसानी से पास कर लेंगी। हालांकि, उनकी असफलता ने उन्हें निराश नहीं किया, बल्कि यह उनके लिए एक सीखने का मौका बन गया। उन्होंने इस असफलता को अपनी कमजोरी पहचानने और उसे सुधारने का अवसर माना।
दूसरा प्रयास
दूसरे प्रयास में भी परी को असफलता का सामना करना पड़ा। इस बार उन्होंने अपनी रणनीति को थोड़ा बदलने की कोशिश की, लेकिन फिर भी वह सफलता हासिल नहीं कर पाईं। वह इस बार भी हताश नहीं हुईं। उनकी मेहनत और संघर्ष ने उन्हें यह सिखाया कि अगर कुछ हासिल करना है तो उसके लिए कभी हार नहीं माननी चाहिए।
तीसरा प्रयास
तीसरे प्रयास में परी ने पूरी तरह से खुद को समर्पित किया और अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए। उन्होंने अपनी पढ़ाई का तरीका बदला, समय प्रबंधन में सुधार किया और मानसिक दृढ़ता से कार्य किया। इस बार उनका संघर्ष रंग लाया और उन्हें 2019 में तीसरे प्रयास में 30वीं रैंक प्राप्त हुई। परी बिश्नोई ने यह साबित किया कि असफलता केवल एक अस्थायी स्थिति होती है और मेहनत और सही दिशा में काम करने से सफलता हासिल की जा सकती है।
यूपीएससी की परीक्षा को पास करने के बाद परी को सिक्किम कैडर मिला और वह एक आईएएस अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए तैयार हो गईं।
परी बिश्नोई का संघर्ष और सफलता
परी की सफलता केवल उनकी मेहनत का परिणाम नहीं थी, बल्कि उनके परिवार के अडिग समर्थन और उनका आत्मविश्वास भी था। उनके माता-पिता ने हमेशा उनका हौसला बढ़ाया और उन्हें यह सिखाया कि गलतियों से सीखना और सही रणनीति अपनाना ही सफलता की कुंजी है।
परी बिश्नोई का कहना है कि उन्होंने अपने तीसरे प्रयास के दौरान एक नई तरह की जीवनशैली अपनाई। उन्होंने अपने दिनचर्या को बिल्कुल सख्त किया और कड़ी मेहनत करने के लिए अपने मानसिकता को पूरी तरह से समर्पित किया। उनकी मेहनत और सफलता का मुख्य कारण था उनका ‘सातवीं जैसा जीवन जीना’ यानी 7 घंटे की नींद, 7 घंटे की पढ़ाई, और शेष समय को अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने में बिताना।
सोशल मीडिया और युवाओं के लिए प्रेरणा
आज परी बिश्नोई एक सफल आईएएस अधिकारी हैं और सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहती हैं। वह अपनी जीवन यात्रा को साझा करती हैं और युवाओं को प्रेरित करती हैं कि वे कभी भी अपने सपनों से समझौता न करें। परी का मानना है कि उनके संघर्षों और असफलताओं ने उन्हें एक मजबूत व्यक्ति बनाया और उन्हें यह सिखाया कि हर व्यक्ति के अंदर कुछ खास होता है, जो वह मेहनत और समर्पण से हासिल कर सकता है।
आज के समय में परी बिश्नोई लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं। उनकी कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास ने यह साबित किया कि अगर कोई ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है।
निष्कर्ष
परी बिश्नोई की कहानी हमें यह सिखाती है कि असफलता कोई स्थायी स्थिति नहीं होती। जीवन में मुश्किलें आती हैं, लेकिन असली सफलता तब मिलती है जब हम इन मुश्किलों से जूझते हुए अपनी मेहनत और धैर्य से अपने सपनों को साकार करते हैं। परी ने यह साबित किया कि अगर दिल में जुनून हो और संघर्ष करने की चाह हो तो कोई भी बाधा हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने से रोक नहीं सकती।
इसलिए, अगर आप भी किसी मुश्किल से जूझ रहे हैं तो याद रखें – “हार मत मानो, हर असफलता से कुछ सीखो और आगे बढ़ो।” यही सच्ची सफलता है।