30 साल पहले एक सपना देखा गया
आज टेस्ला को कड़ी टक्कर देने वाली चीनी कंपनी BYD की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। करीब 30 साल पहले, एक गरीब किसान के बेटे वांग चुआन फू ने बड़ा सपना देखा। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के प्रति उनका जुनून इतना गहरा था कि बचपन में अनाथ होने के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। उनका यह जुनून ही आगे चलकर एक बिजनेस एंपायर खड़ा करने का आधार बना, जिसने वॉरेन बफेट जैसे इन्वेस्टर्स को भी आकर्षित किया।
चीन सरकार का सपोर्ट और EV सब्सिडी
BYD की ग्रोथ में चीन सरकार का बड़ा योगदान रहा है। कंपनी को इलेक्ट्रिक वाहनों पर भारी सब्सिडी मिली, जिससे वह तेजी से आगे बढ़ सकी। यही वजह है कि भारत में भी BYD अपने प्लांट लगाना चाहती थी, लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे रोक दिया गया।
गरीबी से लेकर सफलता तक का सफर
वांग चुआन फू का जन्म चीन के एक गरीब किसान परिवार में हुआ। हालात इतने खराब थे कि दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था। बचपन में ही माता-पिता का साया उठ गया, लेकिन उनके भाई-बहनों ने जैसे-तैसे उनका पालन-पोषण किया। वांग ने कभी हार नहीं मानी और साइंस में गहरी रुचि के चलते पढ़ाई जारी रखी।
BYD की शुरुआत कैसे हुई?
1987 में वांग ने सेंट्रल साउथ यूनिवर्सिटी से मेटलर्जिकल फिजिकल केमिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया और बाद में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। शुरुआती दिनों में उन्होंने सरकारी रिसर्चर के तौर पर काम किया, लेकिन उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि वे खुद कुछ बड़ा कर सकते हैं। 1995 में, सिर्फ 29 साल की उम्र में, वांग ने अपने कजिन लू सियांग यंग के साथ मिलकर एक छोटी सी कंपनी शुरू की। शुरुआत में कंपनी का ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में उतरने का कोई इरादा नहीं था, बल्कि उनका ध्यान बैटरी टेक्नोलॉजी पर था।
बैटरी बिजनेस से EV मार्केट तक
BYD ने सबसे पहले निकल-कैडमियम बैटरियों का निर्माण शुरू किया, जो उस समय काफी पॉपुलर थीं। उन्होंने शुरुआत से ही एक खास रणनीति अपनाई—मार्केट में हिट हो चुके प्रोडक्ट्स के सस्ते और अफोर्डेबल वर्जन तैयार करना। यही कारण था कि कंपनी को जल्द ही Nokia जैसे बड़े ब्रांड्स से ऑर्डर मिलने लगे। बड़ी फैक्ट्री लगाने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वांग ने महंगी मशीनों की बजाय बड़ी संख्या में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों से काम करवाया। यह रणनीति बेहद सफल रही और BYD की पहली बड़ी सफलता बनी।
इलेक्ट्रिक वाहनों की दुनिया में कदम
वांग को एहसास हुआ कि बैटरियों का भविष्य उज्जवल है। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों के बीच रिचार्जेबल बैटरियां एक बड़ा बदलाव ला सकती थीं। इसी सोच के साथ उन्होंने EV मार्केट में उतरने का फैसला किया। 2005 में BYD ने अपनी पहली प्लग-इन हाइब्रिड कार F3 DM1 लॉन्च की। कंपनी की तेजी से हो रही ग्रोथ ने दुनिया के सबसे बड़े इन्वेस्टर वॉरेन बफेट का ध्यान खींचा, और 2008 में बर्कशायर हैथवे ने BYD में 230 मिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट कर 10% स्टेक खरीद लिया। इसके बाद BYD की वैल्यू पांच गुना बढ़कर 5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई।
इंटरनेशनल मार्केट में सफलता
2009 से 2013 के बीच BYD ने पूरी ताकत इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर लगा दी। उन्होंने सिर्फ कारें ही नहीं, बल्कि इलेक्ट्रिक बसें और अन्य कमर्शियल व्हीकल्स भी लॉन्च किए। खासकर यूरोप में उनकी इलेक्ट्रिक बसों को जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला, और BYD K9 इलेक्ट्रिक बस दुनिया की सबसे सफल EV बसों में शामिल हो गई।
BYD बनाम Tesla: कौन आगे?
आज BYD दुनिया की सबसे बड़ी EV कंपनियों में से एक बन चुकी है और टेस्ला को भी कड़ी टक्कर दे रही है। कंपनी की सफलता की मुख्य वजह उसका बैटरी टेक्नोलॉजी पर नियंत्रण और सरकार का सपोर्ट है। टेस्ला जहां हाई-एंड EVs पर फोकस करता है, वहीं BYD अफोर्डेबल EVs पर काम कर रहा है, जिससे वह बड़े मार्केट्स को टारगेट कर पा रहा है।
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भविष्य की रणनीति
BYD का लक्ष्य अब इंटरनेशनल मार्केट में और विस्तार करना है। कंपनी यूरोप, भारत, और अमेरिका में अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है। बैटरी टेक्नोलॉजी में मजबूत पकड़ और अफोर्डेबल EVs की रणनीति के साथ, BYD आने वाले समय में Tesla के लिए एक और बड़ी चुनौती बन सकता है।