18 दिसंबर 2015 की रात, विजय माल्या ने अपनी 60वीं जन्मदिन पार्टी पर 14 करोड़ रुपये खर्च किए। यह पार्टी इतनी भव्य थी कि पूरी दुनिया में सुर्खियों में आ गई। स्पेनिश सिंगर एनरिक इग्लेसियस और भारतीय गायक सोनू निगम जैसे बड़े सितारे परफॉर्म कर रहे थे, शैंपेन पानी की तरह बह रही थी, और दुनिया के कई बड़े नाम जगमगाती रोशनी में डांस कर रहे थे। यह रात विजय माल्या की दौलत, ताकत और अजेयता की गवाही दे रही थी। लेकिन कोई नहीं जानता था कि मात्र ढाई महीने बाद यही माल्या हमेशा के लिए देश छोड़कर भाग जाएगा, 9000 करोड़ रुपये के बैंक घोटाले के पीछे छोड़ते हुए।
कैसे शुरू हुई यह कहानी?
यह कहानी विजय माल्या से नहीं, बल्कि उनके पिता विट्ठल माल्या से शुरू होती है। कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले विट्ठल माल्या को कॉलेज के दौरान ही कंपनियों के वित्तीय आंकड़ों का विश्लेषण करने में महारत हासिल थी। 1940 के दशक में उन्होंने स्टॉक मार्केट से भारी मुनाफा कमाया और फिर ब्रिटिश दौर की शराब कंपनियों पर ध्यान दिया। 1946 में उन्होंने यूनाइटेड ब्रेवरीज (UB) कंपनी के शेयर खरीदने शुरू किए और महज 24 साल की उम्र में कंपनी के चेयरमैन बन गए। उन्होंने कंपनी का विस्तार करते हुए कई और शराब कंपनियों का अधिग्रहण किया और एक विशाल शराब साम्राज्य खड़ा किया।
जब विजय माल्या बने चेयरमैन
1983 में, 59 साल की उम्र में विट्ठल माल्या की अचानक मृत्यु हो गई, जिससे उनके 27 वर्षीय बेटे विजय माल्या को कंपनी की बागडोर संभालनी पड़ी। लेकिन उनके पिता के विपरीत, विजय माल्या की छवि एक पार्टी लवर और शानदार लाइफस्टाइल जीने वाले व्यक्ति की बन गई।
यूबी ग्रुप के कई शीर्ष अधिकारियों को उनकी नेतृत्व क्षमता पर संदेह था, लेकिन विजय ने खुद को साबित करने के लिए शराब व्यवसाय के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में विस्तार करने की कोशिश की। उन्होंने फास्ट फूड चेन, कोल्ड ड्रिंक ब्रांड, इंजीनियरिंग, सॉफ्टवेयर, माइनिंग और टेलीकॉम जैसे कई क्षेत्रों में निवेश किया, लेकिन इनमें से ज्यादातर बिजनेस असफल रहे।
शराब के बिजनेस से मिली सफलता
हालांकि, उनकी असफलताओं के बीच, शराब के बिजनेस में उन्होंने एक बड़ी सफलता हासिल की। 1987 में, उनके पिता ने ‘किंगफिशर’ नाम का बीयर ब्रांड लॉन्च किया था, लेकिन यह मोहन मीकिन की ‘गोल्डन ईगल’ से पीछे था। विजय माल्या ने किंगफिशर को युवाओं को ध्यान में रखते हुए रीब्रांड किया, उसका लोगो रंगीन और आकर्षक बनाया, और स्लोगन दिया – “The King of Good Times”। यह रणनीति सफल रही और किंगफिशर बीयर भारतीय बाजार में सबसे लोकप्रिय ब्रांड बन गया।
किंगफिशर एयरलाइंस: विजय माल्या की सबसे बड़ी भूल
2005 में, विजय माल्या ने एविएशन इंडस्ट्री में कदम रखा और किंगफिशर एयरलाइंस की शुरुआत की। यह एयरलाइंस शानदार सुविधाओं के लिए जानी जाती थी, लेकिन अत्यधिक खर्च और खराब वित्तीय प्रबंधन के कारण यह घाटे में चली गई। 2012 तक, किंगफिशर एयरलाइंस पर भारी कर्ज चढ़ चुका था और कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल हो गया था।
इस बीच, माल्या ने एयरलाइंस को बचाने के लिए बैंकों से भारी मात्रा में कर्ज लिया। उन्होंने 17 बैंकों से लगभग 9000 करोड़ रुपये उधार लिए, लेकिन इस राशि का सही उपयोग नहीं किया गया। धीरे-धीरे बैंकों को एहसास हुआ कि माल्या यह कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं, और उन पर धोखाधड़ी के आरोप लगने लगे।
देश छोड़कर भागना और कानूनी कार्यवाही
मार्च 2016 में, जब भारतीय एजेंसियां उनके खिलाफ जांच तेज कर रही थीं, विजय माल्या अचानक देश छोड़कर ब्रिटेन भाग गए। उन्होंने यह तर्क दिया कि वह स्वेच्छा से देश छोड़कर गए हैं, लेकिन भारतीय एजेंसियों ने उन पर धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया।
2017 में, भारत सरकार ने ब्रिटेन से उनके प्रत्यर्पण की मांग की। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, ब्रिटिश अदालत ने 2018 में उनके प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी, लेकिन माल्या ने इस फैसले के खिलाफ अपील कर दी। फिलहाल, वह ब्रिटेन में हैं और भारतीय एजेंसियां अब भी उन्हें वापस लाने के प्रयास में लगी हुई हैं।
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विजय माल्या से क्या सीख मिलती है?
विजय माल्या की कहानी यह दर्शाती है कि बिजनेस में सिर्फ बड़ा नाम और शान-ओ-शौकत काफी नहीं होती। वित्तीय अनुशासन और जिम्मेदारी भी उतनी ही जरूरी होती है। उनके असफल बिजनेस निर्णय, बैंकों से लिया गया कर्ज और देश छोड़कर भागने का फैसला, यह सब एक ऐसी कहानी बयां करता है जो भारत के सबसे बड़े आर्थिक घोटालों में से एक बन गई।
निष्कर्ष
एक समय जो व्यक्ति भारत में लग्जरी और सफलता का प्रतीक था, वही आज भगोड़ा आर्थिक अपराधी कहलाता है। विजय माल्या का केस भारत के बैंकिंग सिस्टम और कॉरपोरेट सेक्टर के लिए एक सबक है कि बिना उचित जांच-पड़ताल के किसी को भी भारी कर्ज देना भविष्य में बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है।