नार्वे का नया कानून : 15 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने का प्रयास!

सोशल मीडिया ने आज की पीढ़ी के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है, खासकर बच्चों के बीच। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके खतरनाक प्रभाव भी हो सकते हैं? नार्वे सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसके तहत 15 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया का उपयोग करने की अनुमति नहीं होगी। यह कदम बच्चों की सुरक्षा और उनके मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। पहले यह आयु सीमा 13 साल थी, लेकिन बढ़ते चिंताओं और अनुसंधानों के आधार पर इसे 15 साल कर दिया गया है। इस लेख में, हम इस कानून के पीछे के कारण, इसके संभावित प्रभाव और अन्य देशों की नीतियों पर चर्चा करेंगे। क्या यह कदम बच्चों को सुरक्षित रखने में सफल होगा? आइए जानते हैं।

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सोशल मीडिया के खतरनाक प्रभाव और नार्वे की पहल

नार्वे सरकार ने हाल ही में बच्चों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सोशल मीडिया पर न्यूनतम आयु सीमा को बढ़ाकर 15 वर्ष कर दिया है। इससे पहले यह आयु सीमा 13 वर्ष थी। इस परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि युवा बच्चे, जो अभी अपनी पढ़ाई और मानसिक विकास के महत्वपूर्ण चरण में हैं, सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों से बच सकें। अध्ययन दर्शाते हैं कि आजकल बच्चे पढ़ाई के बजाय अधिकतर समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं, जिससे उनके भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है। इस प्रकार, यह नया नियम बच्चों के लिए एक संरक्षक के रूप में काम करेगा।

नार्वे में किए गए एक शोध के अनुसार, 9 से 11 वर्ष के बच्चों में से लगभग 50% से अधिक बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। 10 वर्ष की आयु के बच्चों का आंकड़ा लगभग 58% है, जबकि 11 वर्ष के बच्चों के लिए यह आंकड़ा 72% तक पहुंच जाता है। यह चिंताजनक स्थिति तब है जब सरकारी नियमों के अनुसार, बच्चों को सोशल मीडिया का उपयोग करने के लिए 13 वर्ष की आयु तक पहुंचना आवश्यक है। ऐसे में, सरकार ने यह महसूस किया कि बच्चों को ऑनलाइन हानिकारक सामग्री, साइबर बुलिंग, और अन्य नकारात्मक प्रभावों से बचाना जरूरी है।

बच्चों की सुरक्षा और डेटा संरक्षण का उद्देश्य

इस नए नियम का प्रमुख उद्देश्य न केवल बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि उनका व्यक्तिगत डेटा सुरक्षित रहे। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर उपयोगकर्ताओं के डेटा का दुरुपयोग एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। इस संदर्भ में, नार्वे सरकार ने यह कदम उठाया है कि बच्चों के डेटा को सुरक्षित रखा जा सके और उन्हें यह समझने का अवसर दिया जा सके कि उनके द्वारा साझा की गई जानकारी का किस प्रकार से उपयोग किया जा रहा है।

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नार्वे के प्रधानमंत्री जोनास गहन स्टोरी ने कहा है कि बच्चों को सोशल मीडिया पर मौजूद हानिकारक सामग्री से बचाने के लिए यह निर्णय आवश्यक था। उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम माता-पिता को उनके बच्चों के ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने में मदद करेगा, जिससे वे अपने बच्चों को सुरक्षित रखने में सक्षम होंगे। इस दिशा में, नार्वे सरकार ने व्यक्तिगत डेटा अधिनियम में संशोधन करने का संकल्प लिया है, ताकि बच्चों के डेटा की सुरक्षा को बढ़ाया जा सके।

अन्य देशों में सोशल मीडिया पर बच्चों के लिए नियम

नार्वे का यह निर्णय अकेला नहीं है; दुनिया के अन्य देशों में भी बच्चों की सुरक्षा के लिए समान नियम लागू किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया का उपयोग करने की अनुमति नहीं है। 14 से 15 वर्ष के बच्चों को अपने माता-पिता से मंजूरी प्राप्त करनी होती है।

फ्रांस भी 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए स्कूलों में फोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया में भी बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के कदम उठाए जा रहे हैं, जिसमें आयु सीमा 14 से 16 वर्ष के बीच हो सकती है।

भारत में भी बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा पर चिंता जताई जा रही है। हाल ही में, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 में बच्चों से संबंधित डेटा गोपनीयता पर चर्चा की गई है। इस अधिनियम के अंतर्गत, बच्चों के माता-पिता या कानूनी अभिभावक की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता है, लेकिन अभी भी भारत में बच्चों के लिए सख्त कानूनों की कमी महसूस की जा रही है।

बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए प्रेरणादायक कदम

नार्वे का यह नया कदम न केवल बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, बल्कि यह अन्य देशों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह संदेश देता है कि बच्चों को सोशल मीडिया के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है। इससे न केवल बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षा मिलेगी, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य और विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

इस प्रकार, नार्वे सरकार का यह कदम एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन का संकेत है, जो बच्चों की भलाई और सुरक्षित भविष्य के लिए उठाया गया है। इससे उम्मीद की जा रही है कि अन्य देश भी इसी तरह की पहल करेंगे, जिससे बच्चों को एक सुरक्षित और सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण मिल सके।

इस फैसले के पीछे का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सुरक्षित रखना और उन्हें एक सकारात्मक भविष्य की ओर अग्रसर करना है। क्या आपको लगता है कि इस तरह के नियमों की आवश्यकता अन्य देशों में भी होनी चाहिए? आपकी राय इस विषय पर महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बच्चों की सुरक्षा और उनके भविष्य को प्रभावित कर सकता है।