1991 का आर्थिक संकट: कैसे मनमोहन सिंह ने देश को बर्बादी से बचाया?

भारत की अर्थव्यवस्था संकट में कैसे आई?

आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1991 में हमारा देश भारी आर्थिक संकट में था? देश की स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि भारत के पास मात्र एक महीने के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार नहीं बचा था। महंगाई अपने चरम पर थी, भूखमरी फैल रही थी और भारत दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया था। लेकिन इसी संकट के समय देश की कमान एक महान अर्थशास्त्री, डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में संभाली और कुछ ऐसे फैसले लिए जिनकी बदौलत भारत आर्थिक तबाही से निकलकर एक नई राह पर बढ़ सका।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

1991 का आर्थिक संकट क्यों आया?

भारत को 1991 में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, लेकिन इसकी जड़ें आजादी के समय से ही देखी जा सकती हैं। 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आजादी के बाद तीन बड़े युद्ध (दो पाकिस्तान के साथ और एक चीन के साथ) हुए, जिनका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा। सरकार को सेना और युद्ध के लिए अधिक से अधिक संसाधन देने पड़े, जिससे सरकारी खजाना खाली हो गया।

इसके अलावा, भारत ने उस समय ऐसी आर्थिक नीतियां अपनाईं, जिनकी वजह से विदेशी कंपनियों का निवेश देश में नहीं हो पाया। देश की सरकार चाहती थी कि पब्लिक सेक्टर ही विकास करे और प्राइवेट कंपनियों को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। इस सोच के चलते लाइसेंस राज लागू हुआ, जिसमें किसी भी कंपनी को फैक्ट्री खोलने के लिए सरकार से कई तरह की मंजूरी लेनी पड़ती थी। यह प्रक्रिया बहुत जटिल थी और भ्रष्टाचार से भरी हुई थी।

सोवियत यूनियन का विघटन और गल्फ वॉर का असर

1985 के बाद भारत की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई। उस समय भारत का सबसे बड़ा सहयोगी सोवियत यूनियन था, लेकिन 1991 में जब सोवियत यूनियन का विघटन हुआ, तो भारत को बड़ा झटका लगा। सोवियत संघ भारत को व्यापार और तकनीकी सहायता देता था, लेकिन उसके टूटने से यह सहयोग भी बंद हो गया।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

इसी दौरान 1990 में गल्फ वॉर छिड़ गया, जिसमें अमेरिका समेत 32 देश शामिल हुए। भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर तेल गल्फ देशों से आयात करता था, लेकिन इस युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगीं। इससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ गया और विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म होने की स्थिति में आ गया।

राजनीतिक अस्थिरता ने बढ़ाई मुश्किलें

इस आर्थिक संकट के समय भारत को एक और बड़ी समस्या से जूझना पड़ा—राजनीतिक अस्थिरता। 1991 में जनता पार्टी की अल्पसंख्यक सरकार थी, जो ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई। फरवरी 1991 में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि सरकार संसद में बजट तक पास नहीं कर पाई। विदेशी निवेशकों का भरोसा भारत से उठ गया और क्रेडिट एजेंसियों ने भारत की रेटिंग गिरा दी, जिससे भारत को लोन मिलना मुश्किल हो गया।

इसी बीच राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, जिससे देश और भी अस्थिर हो गया। बाद में हुए चुनावों में कांग्रेस सरकार बनी और पी. वी. नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने। देश की बिगड़ती हालत को देखते हुए नरसिंह राव ने सबसे पहले कैबिनेट सचिव से देश की वास्तविक स्थिति पूछी। जब उन्हें बताया गया कि भारत के पास मात्र तीन हफ्तों के लिए ही विदेशी मुद्रा बची है, तो उन्होंने तुरंत एक बड़ा फैसला लिया।

मनमोहन सिंह का आर्थिक सुधार

नरसिंह राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया और देश की अर्थव्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी। मनमोहन सिंह ने 1 महीने के भीतर एक ऐसा बजट पेश किया, जिसने भारत की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बदल दी।

1. लाइसेंस राज की समाप्ति

मनमोहन सिंह ने सबसे पहले लाइसेंस राज को खत्म कर दिया, जिससे कंपनियों को बिना किसी सरकारी बाधा के उत्पादन करने की छूट मिल गई। पहले कंपनियों पर उत्पादन की सीमा तय की जाती थी, लेकिन इसे हटा दिया गया, जिससे व्यापारियों को आसानी से कारोबार करने का अवसर मिला।

2. आयात नीति में सुधार

1991 से पहले भारत में कई वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध था, जिससे आम लोगों के लिए चीजें महंगी हो जाती थीं। सरकार ने इन पाबंदियों को हटाया और आयात को आसान बनाया, जिससे देश में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और उपभोक्ताओं को बेहतर और सस्ती चीजें मिल सकीं।

3. विदेशी निवेश के दरवाजे खोले

पहले भारत में विदेशी कंपनियों को निवेश करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन मनमोहन सिंह ने इस नीति में बदलाव किया और विदेशी निवेश को 51% तक बढ़ाने की मंजूरी दी। इससे देश में नई टेक्नोलॉजी और पूंजी आई और कई विदेशी कंपनियां जैसे वोडाफोन, सैमसंग, पीएंडजी आदि भारत में अपना कारोबार स्थापित करने लगीं।

4. सरकारी एकाधिकार खत्म किया

पहले कई उद्योग जैसे टेलीकॉम सिर्फ सरकारी कंपनियों के लिए आरक्षित थे, लेकिन 1991 के बाद इस नीति में बदलाव किया गया और निजी कंपनियों को भी इन सेक्टरों में कारोबार करने की अनुमति दी गई। इसके बाद भारतीय बाजार में कई नए टेलीकॉम और अन्य कंपनियां आईं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ने लगी।

5. स्टॉक मार्केट में सुधार

1991 से पहले भारतीय शेयर बाजार सरकार के नियंत्रण में था, लेकिन मनमोहन सिंह ने सेबी (SEBI) को मजबूत किया और शेयर बाजार को ज्यादा पारदर्शी बनाया, जिससे देश में निवेश बढ़ा।

इसे भी पढ़ें:- तारक मेहता का उल्टा चश्मा: भारत का सबसे लोकप्रिय शो अब डाउनफॉल की ओर?

नतीजा: भारत बना पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

इन सभी सुधारों की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। देश में रोजगार बढ़ा, कंपनियों का मुनाफा बढ़ा और विदेशी निवेश आने लगा। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इस विकास की नींव 1991 में रखी गई थी।

निष्कर्ष

1991 का आर्थिक संकट भारत के इतिहास का एक काला अध्याय था, लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह के ऐतिहासिक फैसलों ने देश को इस संकट से बाहर निकाला और विकास की नई राह दिखाई। उनके द्वारा किए गए सुधारों का असर आज भी देखा जा सकता है, क्योंकि उन्हीं के कारण भारत एक मजबूत और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बन पाया है।

Leave a Comment